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‘मुक्तियज्ञ’ खंडकाव्य

‘मुक्तियज्ञ’ खंडकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।

 'मुक्तियज्ञ' खंडकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।

प्रश्न – ‘मुक्तियज्ञ’ खंडकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।

उत्तर – ‘मुक्तियज्ञ’ खंडकाव्य सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखित ‘लोकायतन’ नामक प्रबंध महाकाव्य का एक अंश मात्र है। इसके कथानक को हम निम्नलिखित बिंदुओं की सहायता से समझ सकते हैं –

1. नमक – सत्याग्रह — कवि पौराणिक कथाओं को नवयुग के परिवेश में ढालकर भारतीय स्वतन्त्रता की कहानी को प्रारम्भ करता है। फिर बापू को ‘राम’ और ‘लोकमुक्ति’ को वन्दिता विमूच्छित माता सीता का प्रतीक मानकर नमक सत्याग्रह दाण्डी- यात्रा से कथा प्रारम्भ होती है – यद्यपि तीस करोड़ भारतवासियों का मुख्य उद्देश्य नमक बनाना नहीं था, बल्कि वह एक ऐतिहासिक विद्रोह का प्रतीक था। बापू अपने गिने – चुने साथियों को लेकर दाण्डी – यात्रा पर चल पड़े। यहीं से उनके सत्याग्रह आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ। स्थान-स्थान पर उनका अभिनन्दन हुआ। बापू के इस प्रभाव को देखकर शासन के अधिकारीगण वहाँ से पलायित हो गये। राष्ट्रपिता बापू के रूप में सारा राष्ट्र निर्भीकतापूर्वक नमक का विरोध करने के लिए चल पड़ा। सत्य के इस अभियान को देखकर सारा विश्व आश्चर्यचकित हो गया।

2. नारी – जागरण — अंग्रेजों के क्रूर दमन के पश्चात् भी सत्याग्रहियों का धीमा नहीं पड़ा। वे अपने कर्म-पथ पर अबाध गति से बढ़ते रहे। अंग्रेजों द्वारा लाठी चार्ज हुए, गोलियाँ चलीं, कितनी ही माँ के लालों को बलिदान होना पड़ा किन्तु इससे सत्याग्रह का दौर धीमा नहीं पड़ा, बल्कि उसमें और भी प्रखरता आई। युग-चेतना के साथ-साथ नारियों में भी त्याग, वीरता और साहस का उदय हुआ। उनका मनोबल बढ़ा। वे अब कोमलांगी नहीं रहीं , रणचंडी बन गईं।

3. हरिजनोद्धार — हरिजनोद्धार और भारतीय अखण्डता को लेकर बापू ने जेल में ही आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया जो एक ऐतिहासिक महत्त्व की घटना बन गई। अन्त में भारतीय आत्मा की विजय हुई। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने आकर बापू के इस अनशन को तुड़वाया। इस प्रकार छुआछूत के भेद-भाव को मिटाने के लिए बापू ने जी-जान से कोशिश की और उन्हें अन्त में सफलता भी मिली।

4. असहयोग आन्दोलन — बापू के इस आह्वान पर सारा देश उनके पीछे चल पड़ा। छात्रों ने स्कूलों का बहिष्कार कर दिया। कितनों ने अपनी सरकारी नौकरियों से त्याग—पत्र दे दिया। सभी लोग हँस- जाने लगे । इस प्रकार असहयोग आन्दोलन तीव्रतर होता गया। गाँव – गाँव में असहयोग आन्दोलन की आग भड़क उठी। उधर अंग्रेजों का दमन – चक्र भी कम नहीं था। ‘ खेड़ा ‘ ग्राम के किसानों को लगान न देने के कारण बे – घरबार कर दिया गया । लगभग एक दशक तक अंग्रेजों के साथ इसी प्रकार की खींचातानी चलती रही । अंग्रेज सत्याग्रहियों के दमन के लिए भाँति-भाँति के पैंतरे बदलते रहे। समझौते और संधियों के नाटक रचे गये किन्तु भारत अपने महान् उद्देश्य से रंचमात्र भी नहीं डिगा।

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5. सविनय अवज्ञा आन्दोलन – इसी बीच बिहार का हृदयद्रावक भूकम्प आया। बंगाल में भीषण अकाल पड़ा। देश के इस अर्थ – संकट के समय भ्रष्टाचारियों को शोषण का और भी अवसर प्राप्त हुआ। फिर द्वितीय महायुद्ध छिड़ा। उसमें सहयोग के लिए कांग्रेस ने जो शर्तें ब्रिटिश सरकार के सामने रखीं उन्हें स्वीकार किया गया। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को सन् 1940 ई ० में व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर देना पड़ा। इसी समय रूस पर जर्मनी के आक्रमण के मध्य पूर्व एशिया में खतरा उपस्थित हो गया। बाध्य होकर भारतीय समस्याओं पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘ क्रिप्स मिशन ‘ भेजा किन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका और ‘ अंग्रेजों भारत छोड़ो ‘ आन्दोलन करने का निश्चय हुआ।

6. ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो ‘ आन्दोलन — 8 अगस्त, 1942 ई ० को मुम्बई में कांग्रेस अधिवेशन समाप्त हुआ । वहीं दूसरे दिन सबेरे सभी नेताओं को जेल में बन्द कर दिया गया । 

7. भारतीय स्वतन्त्रता और देश का विभाजन, बापू की हत्या – उधर देश स्वतन्त्रता की खुशियों में लीन था। इधर देश – विभाजन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों की कूटनीतिक चालों से देश में साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़की। बापू ने उसके लिए मौन और उपवास व्रत किये और उसके लिए लोगों को समझाया कि राष्ट्रीय स्वतन्त्रता तो हमारा पहला चरण मात्र था। वास्तविक उद्देश्य तो इस पृथ्वी पर विश्व बन्धुत्व की भावना का उदय करना है। पृथ्वी पर मानवीय प्रेम फैलाकर स्वर्ग को उतारना है; किन्तु लोगों के अचेतन मन में रावण और कंस अभी जीवित रह गये थे। आकाश से वज्रपात हुआ। मनुष्य बनना तो दूर रहा, पृथ्वी पर रक्तवर्ण अन्धकार में ही हमारा सूर्य अस्त हो गया। बापू की हत्या कर दी गयी। इस प्रकार स्वतन्त्रता के इस मुक्तियज्ञ में वह स्वयं आहुति बन गये ।

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